Poetry मैं भूल जाता हूँ
मैं भूल जाता हूँ
इतना कुछ कहने औऱ सुनने को है तेरे इस फ़साने में
कि जब मैं याद करता हूँ तो सब कुछ भूल जाता हूँ
कभी यह भूल जाता हूँ कि किस मक़सद से मैं निकला
बहुतेरी बार गुज़री राहों पर मोड़ हैं कितने मैं अक्सर भूल जाता
हूँ
कभी जिन राहों पर खड़े हो मैने रहनुमाई की थी
अब उन्हीं राहों पर घर का पता भी भूल जाता हूँ
जो थे राह से भटके हुए शामिल अपने कारवाँ में
उन्ही की दास्तानों के दरम्यां में मैं खुद की कहानी भूल जाता
हूँ
राह में गर शक़्स कोई परीशां सा दिखाई दे
उसी का हालेदिल सुनने में मैं हर ग़म भूल जाता हूँ
वफाओं का पुल बनाने में ऐसा मशगूल होता हूँ
कि दरिया के ख़ौफ़ेतूफां को भी मैं भूल जाता हूँ
लुभावने वायदे किये और क़समें उठायीं थीं जिन शक़्सों ने
उनका मज़मून औऱ वो चेहरे मैं बिल्कुल भूल जाता हूँ
जहाँ नादाँ दिल आकर बड़ी फरियाद करते थे
उन्हीं बेदर्द हाकिमों का पता अब मैं भूल जाता हूँ
जो दिल से याद करते हैं और जी से भी निबाहते हैं
उन्हीं के बीच आकर के मैं अपना वज़ूद भूल जाता
हूँ
अरविंद कपूर
Very intimate touch with nature.
ReplyDeleteVery heart touching
ReplyDeleteThanks
DeleteVery touching and deep.keep it up
ReplyDeleteAwesome
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