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Showing posts from September, 2019

जब आप आप औऱ मैं मैं नहीं रहता

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जब क्षितिज पर भोर का संकेत होने लगे, पक्षी जब अपने नीड़ पर कुलबुलाने लगे । जब ओस की बूंदें बादलों और हवा से विलग होने को आतुर जान पढें, पात पात जब उस ओस को अपने अपने अंग पर धरने को हों ख़ड़े । तब मेरे मानस पटल पर आप छाने लगते हैं ।। जब भवरों का गान  और पंछी समुह का तान, जब कोयल की कूक हृदय में उठाये इक मधुर हूक । तब मेरी तन्द्रा में आप आने लगते हैं ।। जब सूर्य की पहली किरण आँखों के पट धीरे से है खोले, मलयज़ पवन कानों में प्यार से है कुछ बोले । मस्ती में लतिकायें अल्हड़ सी हैं यूँ डोले, और जब प्रेम का ज्वर चढ़ने लगे होले होले । तब आप मुझे दीवाना बनाने लगते हैं । जब रवि से आँख मिलाये न बने, जब शांत पेड़ हैं प्रहरी से तने । और गर्मी व पसीने में बार बार जो ठने, निढाल से भाव हो उठें अनमने ।। तब ओढ़नी सा आप और आपका साथ विश्राम दिलाने लगते हैं।। फिसलता जा रहा है धीरे धीरे से दिन, ओढ़ रही है शाम तारों की चादर गिन गिन। जब थमने लग जाय दिन भर का धमाल, और कोई भी रह न पाये जब पी के बिन । तब मद्धिम मद्ध

Poetry मैं भूल जाता हूँ

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मैं भूल जाता हूँ इतना कुछ कहने औऱ सुनने को है तेरे इस फ़साने में कि जब मैं याद करता हूँ तो सब कुछ भूल जाता हूँ कभी यह भूल जाता हूँ कि किस मक़सद से मैं निकला बहुतेरी बार गुज़री राहों पर मोड़ हैं कितने मैं अक्सर भूल जाता हूँ कभी जिन राहों पर खड़े हो मैने रहनुमाई की थी अब उन्हीं राहों पर घर का पता भी भूल जाता हूँ जो थे राह से भटके हुए शामिल अपने कारवाँ में  उन्ही की दास्तानों के दरम्यां में मैं खुद की कहानी भूल जाता हूँ राह में गर शक़्स कोई परीशां सा दिखाई दे  उसी का हालेदिल सुनने में मैं हर  ग़म  भूल जाता हूँ वफाओं का पुल बनाने में ऐसा मशगूल होता हूँ कि दरिया के ख़ौफ़ेतूफां को भी मैं भूल जाता हूँ लुभावने वायदे किये और क़समें उठायीं थीं जिन शक़्सों ने उनका मज़मून औऱ वो चेहरे मैं बिल्कुल भूल जाता हूँ जहाँ नादाँ दिल आकर बड़ी फरियाद करते थे उन्हीं बेदर्द हाकिमों का पता अब मैं भूल जाता हूँ जो दिल से याद करते हैं और जी से भी निबाहते हैं उन्हीं के बीच आकर के मैं   अपना वज़ूद भूल जाता हूँ अरविंद कपूर

मां

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रहनुमा

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