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आस ही जीवन है
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*आस ही जीवन है* पतली पगडंडियां ऊबड़ खाबड़ राहें अचानक मोड़ इन सबसे होते हुए हवा में झरने से आती नमी की मादक गंध दूर इक़ आस का पंछी यह आस रात में भी चांद तारों की प्रतीक्षा नहीं करती सांझ में ही ध्रुव तारा सी बनी रहती है यही आस ही सांस है चाहत है राहत है बहते ख़ून की धड़कन है अंग अंग में कुछ कर गुजरने की फड़कन है रोज़ लोरी सी कल को सुंदर औऱ मन को मंदिर बनाती है धूप में पैदल चलने वाले के लिए इक़ पेड़ की छाया बेचैन हो चली रातों में माँ का साया है शायद आस से ही आसीस बनती है कठिनाई लांघने को वशीभूत करती है यह टिक टिक सी घड़ी है भविष्य के सपनों से जड़ी है खोना नहीं आस ही जीवन है सुर है संगीत है ममता है मीत है ⚓ अरविन्द 'साहिल'