जब आप आप औऱ मैं मैं नहीं रहता
जब क्षितिज पर भोर का संकेत होने लगे, पक्षी जब अपने नीड़ पर कुलबुलाने लगे । जब ओस की बूंदें बादलों और हवा से विलग होने को आतुर जान पढें, पात पात जब उस ओस को अपने अपने अंग पर धरने को हों ख़ड़े । तब मेरे मानस पटल पर आप छाने लगते हैं ।। जब भवरों का गान और पंछी समुह का तान, जब कोयल की कूक हृदय में उठाये इक मधुर हूक । तब मेरी तन्द्रा में आप आने लगते हैं ।। जब सूर्य की पहली किरण आँखों के पट धीरे से है खोले, मलयज़ पवन कानों में प्यार से है कुछ बोले । मस्ती में लतिकायें अल्हड़ सी हैं यूँ डोले, और जब प्रेम का ज्वर चढ़ने लगे होले होले । तब आप मुझे दीवाना बनाने लगते हैं । जब रवि से आँख मिलाये न बने, जब शांत पेड़ हैं प्रहरी से तने । और गर्मी व पसीने में बार बार जो ठने, निढाल से भाव हो उठें अनमने ।। तब ओढ़नी सा आप और आपका साथ विश्राम दिलाने लगते हैं।। फिसलता जा रहा है धीरे धीरे से दिन, ओढ़ रही है शाम तारों की चादर गिन गिन। जब थमने लग जाय दिन भर का धमाल, और कोई भी रह न पाये जब पी के बिन । तब मद्धिम ...